नई दिल्ली। पिता की सलाह पर कुश्ती को अपनाने वाली रीतिका हुड्डा महिला हैवीवेट (76 किग्रा) भार वर्ग में भारत की पहली ओलंपिक क्वालीफायर बनने के बाद अगले सप्ताह से पेरिस में शुरू हो रहे खेलों में पदक का दबाव लिये बिना अपनी तैयारियों को पुख्ता कर रही है। किस्मत पर भरोसा करने वाली रीतिका उन चीजों (कड़ी मेहनत) को पूरे जी-जान से करना चाहती है जो उनके हाथ में है।
रोहतक की 22 साल की इस पहलवान के लिए कुश्ती पहली पसंद नहीं थी। रीतिका बचपन में हैंडबॉल खेलती थी और यहां तक कि जूनियर राष्ट्रीय स्तर पर वह राज्य टीम में जगह बनाने में सफल रही। उन्होंने राज्य टीम में जगह बनाने की खुशी को जब अपने परिवार के साथ साझा किया तो उनके पिता ने उनसे टीम खेल के बजाय व्यक्तिगत खेल चुनने का सुझाव दिया। इसके बाद रीतिका की कुश्ती की यात्रा की शुरुआत 2015 में हुई।
उन्होंने साक्षात्कार में कहा, ‘‘मेरे पिता मुझे छोटू राम अखाड़े में ले गए। मेरे कोच मनदीप ने मुझे एक खास आक्रमण करने के लिए कहा और वह मेरे प्रदर्शन से खुश थे, इसलिए उन्होंने मुझे इसमें ले लिया। मेरे लिए अब कुश्ती ही सब कुछ है। मैं कुश्ती के बारे में सोचती हूं, उसी के सपने देखती हूं। मैं किसी और चीज के बारे में नहीं सोच सकती।’’ रीतिका की मां नीलम ने बताया उनके पिता जगबीर चाहते थे कि उनकी बेटी व्यक्तिगत खेल चुने।
नीलम ने कहा, ‘‘उसे राज्य हैंडबॉल टीम के गोलकीपर के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए चुना गया था। वह घर आई और खुशी से उसने अपने चयन के बारे में बताई। उसके पिता ने पूछा कि क्या वह वास्तव में खेल को गंभीरता से लेना चाहती है और जब रीतिका ने हां में सिर हिलाया, तो उन्होंने कहा कि तुम्हें कोई व्यक्तिगत खेल खेलना चाहिए ।’’
नीलम ने कहा तब जगबीर ने रीतिका से उसका पसंदीदा खेल पूछा और उसने जूडो और कबड्डी का जिक्र किया लेकिन उसके पिता ने उसे कुश्ती खेलने का सुझाव दिया और वह मान गई। उन्होंने बताया, ‘‘ रीतिका को 15 अगस्त 2015 को अखाड़े में नामांकित किया गया था।’’ रीतिका ने पेरिस ओलंपिक के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘ मैं अपनी तरफ से पूरी मेहनत कर रही हूं। अगर आप जी-जान से कुछ चाहते है तो आप उसे हासिल कर सकते है। मैंने अंडर-23 विश्व चैम्पियनशिप जीतने के बारे में नहीं सोचा था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे फाइनल में पता भी नहीं था कि मैं विश्व चैम्पियन (अमेरिका की कैनेडी ब्लेड्स) के खिलाफ खेल रही हूं। नियति को हालांकि मेरी जीत मंजूर थी।’’
रीतिका ने कहा, ‘‘ इस खेल को अपनाने के बाद से ही मैं किरण दी (बिश्नोई) को अपना आदर्श मानती हूं। अब देखिये मैंने उन्हें ओलंपिक ट्रायल में हरा दिया। मैंने राष्ट्रीय खेलों में दिव्या काकरान को भी हराया। इन जीतों से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मुझे विश्वास होने लगा कि नियति मुझे एक निश्चित दिशा में धकेल रही है और मैं उसके साथ खेलूंगी।’’ रीतिका को ओलंपिक में कठिन ड्रॉ को लेकर हतोत्साहित नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे वास्तव में बड़े पहलवानों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने में मजा आता है। पेरिस में 16 पहलवान होंगे। मैंने यूडब्ल्यूडब्ल्यू वीडियो और यूट्यूब के माध्यम से प्रत्येक पहलवान की खेल शैली का अध्ययन किया है।’’ पहलवानों के लिए हालांकि अपने वजन को बनाये रखना काफी चुनौतीपूर्ण होता है लेकिन रीतिका के लिए यह काम ज्यादा परेशानी वाला नहीं है। पहले 72 किग्रा भारवर्ग में प्रतिस्पर्धा करने वाली रीतिका ओलंपिक में खेलने के सपने को पूरा करने के लिए 76 किग्रा में खेलने लगी।
उन्होंने यहां अभ्यास शुरू करने से पहले कहा, ‘‘ मेरे लिए वजन बढ़ाना ज्यादा चुनौतीपूर्ण है, मैं अभ्यास के बीच में कुछ खाती रहती हूं।’’ रीतिका ने कहा कि उनका परिवार पूरी तरह से शाकाहारी और प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने के लिए उनके लिए चिकन खाना काफी चुनौतीपूर्ण था। रीतिका ने कहा, ‘‘ मुझे प्रोटीन सेवन के लिए चिकन खाना शुरू करना पड़ा। मेरे लिए उसके स्वाद को अपनाना कठिन था। मेरी माँ ने चिकन के बहुत सारे व्यंजन आजमाए और अब मैंने थोड़ी ग्रेवी वाला चिकन खाना शुरू कर दिया है।’’ नीलम ने बेटी की जरूरत को पूरा करने के लिए यू-ट्यूब की मदद से चिकन बनाना सीखा।
स्कूल स्तर पर बास्केटबॉल की खिलाड़ी रही नीलम ने कहा, ‘‘हमारे यहां घर पर कोई चिकन नहीं खाता हैं। इसलिए, मुझे नहीं पता था कि इसे कैसे बनाया जाए। मुझे बताया गया था कि उसे घर का बना खाना देना होगा। इसलिए, मैंने सीखने के लिए यूट्यूब की मदद ली। मुझे इसे (चिकन) साफ करते समय बहुत बुरा लगता है लेकिन मैं इसे अपनी बेटी के लिए करती हूं।