लखनऊ,संवादपत्र : सांप के लिए दूध किसी जहर से कम नहीं है। इसके बावजूद आस्था के पर्व नागपंचमी पर शहर में विभिन्न स्थानों और मंदिरों में सांप को बीन पर नचाने के साथ उन्हें दूध पिलाने का सिलसिला जारी रहा।
वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार सांप को लेकर लोगों में तमाम तरह की भ्रांतियां मौजूद हैं, इसका सपेरे फायदा उठा कर अपनी जेबें भरते हैं। कई इलाकों में सपेरे अपने सांप को विशेष प्रजाति का बताते नजर आये। कहीं पर बताया कि यह सांप सौ वर्ष पुराना है और इसके चलते इस पर बाल भी उग आए हैं। वहीं कुछ जगहों पर सांपों को उड़ने वाली प्रजाति का बताया गया। हालांकि आज पहले से चौकन्ने वन विभाग ने सपेरों के खिलाफ अभियान चलाया और उनसे सांप लेकर वन क्षेत्रों में छोड़ दिया।
कैसे दूध बन जाता है जहर
सांपो के एक्सपर्ट आदित्य तिवारी ने बताया कि सांपो की 350 से ज्यादा प्रजातियां है। सांपों की कोई भी प्रजाति दूध का सेवन नहीं करती। दूध से सांपों की जान जा सकती है। सांपो के बारे में फैली भ्रामक जानकारी के कारण इन सांपो के जीवन पर हर समय खतरा बना रहता है। वन्य जीव अधिनियम के तहत प्रतिबंधित होने के बाद भी वन विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नही की जा रही है। जिसके कारण यूपी मे सांपों की तस्करी से लेकर उनकी मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
घूमते रहे सपेरे, विभाग बना रहा उदासीन
नागपंचमी पर सांपों का खेल दिखाने से लेकर उनको दूध पिलाने का सिलसिला दिनभर चलता रहा, जबकि इन प्रतिबंधित सांपो के प्रदर्शन पर भारी जुर्माने के साथ अधिकतम छह वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है। लेकिन सपेरों को इसकी कोई परवाह नहीं थी। वन्यजीवों के साथ हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए वन्यजीव अधिनियम में सांपो को शेड्यूल-1 और 2 में डाला गया है। लेकिन शहर में किसी भी इलाके में वन विभाग की टीम इन सपेरों के खिलाफ एक्शन लेने नहीं पहुंची।
वन्यजीव अधिनियम के तहत प्रतिबंधित जीवों के प्रदर्शन और उनको पालने वाले पर कार्रवाई कर रहा है। इसी क्रम मे नागपंचमी के दिन सांपो का खेल और तमाशा दिखाने की शिकायत मिलने पर काकोरी और मोहनलालगंज मे एक्शन लिया गया है। आगे भी ऐसी कार्रवाई होती रहेगी।