लखनऊ, संवादपत्र । मौका और दस्तूर दोनों था, फिर भी सपा और कांग्रेस का विधानसभा में प्रदर्शन असरदार नहीं रहा। दिल्ली में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की ललकार के आगे कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी असहज हुए। मगर, लखनऊ में विपक्ष के उठाए मुद्दों पर मुख्यमंत्री योगी के तेवर ही भारी साबित हुए। मानसून सत्र की कार्यवाही में पहले दिन से लेकर आखिर तक सपा प्रमुख अखिलेश यादव की कमी खली। इसकी वजह थी कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ी पटखनी देने के बाद भी सदन में दबंग आवाज का अभाव।
ढंग से कोई यहां तक तंज कसने या ललकारने वाला नहीं था कि भष्ट्राचार, कानून व्यवस्था, विकास कार्य, बिजली, पानी, दवाई, सफाई सब चकाचक है तो, लोकसभा चुनाव में जनता ने क्यों नकार दिया। विपक्ष में कोई ऐसा नहीं दिखा जो मुख्यमंत्री पर सीधा वार-पलटवार कर सके। घेरने में उपमुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद और ब्रजेश पाठक का योगी से विवाद भी सदन में बड़ा मुद्दा नहीं बना सके।
अलबत्ता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी फायरब्रांड छवि में रत्ती भर भी ढील देते नहीं दिखे। समाजवादियों को ही महिला अपराधों पर ऐसी खरी-खरी सुनाई कि लोग दंग रह गए। अयोध्या और हरदोई के ताजा अपराधिक मामलों में सपा नेताओं की संलिप्तता ने रही-सही कसर पूरी कर दी। लखनऊ में दंपति के साथ हुए मामले में भी ऐसा ही रहा।
नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने गुरुवार को योगी के तेवर पर यह कहकर जरूर तंज कसा कि उम्र का दोष है.. आपके गुरु और दादा गुरू सौम्य स्वभाव के थे, बुलडोजर चलाने की बातें नहीं करते थे। लेकिन, योगी ने साफ कर दिया कि बुलडोजर से सिर्फ अपराधी डरते हैं और उन्हें डरना भी चाहिए। तहसीलों-थानों में भष्ट्राचार हो या भर्ती परिक्षाओं के पेपर लीक मामले सबमें योगी ने सपा सरकार में सरकारी नौकरियों में व्याप्त भ्रष्टाचार और तमाम वसूली में चाचा-भतीजा का नाम लेकर एक साथ अखिलेश यादव और शिवपाल यादव को घेरने में कोई संकोच नहीं किया। सराहनीय रहा कि पूरी चर्चा के दौरान नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष ने एक-दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन क्या नेता प्रतिपक्ष अखिलेश होते तो ऐसा क्या संभव हो पाता। सदन के पिछले रिकार्ड तो ऐसा नहीं कहते। वार-पलटवार में अखिलेश का तेवर सबने देखा है।
लोकसभा चुनाव से बराबरी पर है सपा
लोकसभा चुनाव के बाद सपा और भाजपा 185-185 विधानसभा सीटों पर बढ़त में है। यह बात मुख्यमंत्री ने भाजपा कार्यकर्तांओं को समझाते हुए विधानसभा चुनाव 2027 में पूरी ताकत से जुटने आह्वान करते हुए कही थी। लेकिन सदन में इसका अहसास सत्ता पक्ष को कराने में विपक्ष के पास न तेवर था, न दबंग आवाज। सदन की कार्यवाही के बाद सपा और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पास सोशल मीडिया पर वायरल करने के लिए एक ढंग का फुटेज तक नहीं है, जिससे सत्ता पक्ष को कमजोर होते दिखा सके।
अखिलेश होगें तभी मजबूत होगा 2027
राजनीति के जानकार कहते हैं कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उप्र में अगले चुनाव को ध्यान में रखते हुए दिल्ली रूख करने के बजाय प्रदेश में ही भाजपा को सदन से लेकर सड़क तक घेरने का नेतृत्व करना चाहिए था। यह कमी चुनाव तक बरकरार रही तो भाजपा लोकसभा की हार से निकलने के किला मजबूत करती जाएगी।