पांच साल के अनंत का जन्म से ही एक पैर छोटा था, अब उछल-कूद और नृत्य भी करता है अनंत
लखनऊ, संवादपत्र : दिव्यांगता अभिशाप नहीं होती है इसको प्रमाणित किया है पांच वर्षीय अनंत ने। अनंत सामान्य बच्चों की तरह ही उछल-कूद करता है और अपने नृत्य से सबका मन मोह लेता है। दिव्यांगता पर बेटे की अनंत जीत पर माता-पिता भी फूले नहीं समाते हैं। यह संभव हो पाया है किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के लिंब सेटर की वजह से।
मूलरूप से बलरामपुर जिले के रहने वाले श्याम पांडेय अपनी पत्नी अलका पांडेय के साथ सीतापुर रोड स्थित अहलदादपुर गांव की नई बस्ती में रहते हैं। श्याम पांडेय बीकेटी के एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में कैंटीन चलाते हैं। श्याम ने बताया कि पत्नी अलका को गर्भधारण में दिक्कत होती थी। काफी इलाज के बाद एक निजी अस्पताल में अलका ने बेटे को जन्म दिया। घर के सभी सदस्य खुश थे।
जन्म के तीन दिन बाद डॉक्टर ने बताया कि बच्चे का बायां पैर दाहिने से छोटा है। बायां पैर दूसरे पैर के घुटने के बराबर ही था। इस पर परिजन सदमे में आ गए। बच्चे का नाम अनंत जीत पांडेय रखा गया। परिजनों ने अनंत को कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन फायदा नहीं हुआ। करीब पांच साल का होने पर उसे चलने-फिरने में दिक्कत होने लगी। परिजन उसे केजीएमयू के बाल रोग में दिखाया। यहां डॉक्टर सुरेश ने बच्चे के पैर का परीक्षण कर उसे लिंब सेंटर भेज दिया। लिंब सेंटर में सीनियर प्रोस्थेटिस्ट एवम प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक वर्कशॉप की इंचार्ज शगुन सिंह ने बताया कि बच्चे के पैर की नाप लेकर कृतिक पैर तैयार कर लगाया गया। उसे चलने का प्रशिक्षण दिया गया। अब अनंत खेलने-कूदने के साथ नृत्य भी करता है।
दूसरा पैर खराब और कमर टेढ़ी होने का भी डर था
शगुन ने बताया कि अनंत का एक पैर छोटा होने के कारण वह संतुलन बनाने के लिए दूसरे पैर को घुटने से मोड़ कर रखता था। चलने में कमर से टेढ़ा हो जाता था। लिहाजा समय के साथ दूसरा पैर खराब होने और कमर टेढ़ी होने का भी खतरा था।
निजी कंपनियों के मुकाबले 90 फीसदी तक सस्ते कृतिम अंग
सीनियर प्रोस्थेटिस्ट एवम प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक वर्कशॉप की इंचार्ज शगुन सिंह ने बताया कि सस्ते, टिकाऊ और हल्के उपकरण वर्कशाप में तैयार किए जा रहे है। हर महीने 500-600 दिव्यांगजनों को सेवाए दी जा रही है। सेंटर में पूरे प्रदेश से मरीज रेफर होकर आते हैं। सेंटर की खासियत यह है कि यहां चार से छह हजार रुपये में पैर व अन्य अंग बन जाते हैं। जबकि निजी कंपनियों में इसकी कीमत 50 से 60 हजार तक की होती है। इसके अलावा गरीबों के लिए सरकारी फंड और निजी संस्था के माध्यम से मुफ्त में भी अंग लगाए जा रहे हैं।