लखनऊः पुलिस विभाग के खिलाफ कोर्ट पहुंचे लोग, डिजिटल सबूत जुटाना नहीं है आसान, पुलिस परेशान

By Sanvaad News

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लखनऊ, संवादपत्र : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 105 को लेकर देश की पुलिस संकट में है। आकस्मिक कार्रवाईयों में सबूत के तौर पर आडियो अथवा वीडियो न तैयार कर पाना अभियुक्तों की जमानत अथवा अन्य तरह की राहतों का कारण बनता जा रहा है। न्यायालय लगातार शासन-प्रशासन से शिकायतें कर रहा है। यही नहीं कई मामलों में न्यायालयों ने विवेचकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की संस्तुति भी कर दी है, जिससे पुलिस परेशान हो गई है। अब पुलिस विभाग को समझ नहीं आ रहा है कि आकस्मिक कार्रवाइयों का वीडियो बनाए तो बनाए कैसे? एक अनुमान के मुताबिक 1 जुलाई से नया कानून लागू होने के बाद पुलिस विभाग के खिलाफ न्यायालयों ने सैकड़ों की संख्या में पत्र लिख डाले।

विगत दिनों अभियुक्त को गिरफ्तार करते समय कुछ वीडियो वायरल हुए थे, जो चर्चा का विषय बन गए। वीडियो से प्रतीत हो रहा था कि अभियुक्त की गिरफ्तारी नैसर्गिक नहीं है, बल्कि सुनियोजित है। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस विभाग को खूब ट्रोल किया गया और मजाक भी उड़ा गया। हालांकि वह वीडियो कहां के थे इसकी जांच भी नहीं करवाई गई। हां सवाल जरूर उठने लगा कि क्या यही डिजिटल एवीडेंस पुलिस न्यायालय में पेश करेगी ?

केस -1

आगरा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 27 जुलाई 2024 को डीजीपी प्रशांत कुमार को पत्र लिखकर आगरा के पिनाहट एसएचओ ब्रम्हपाल सिंह की शिकायत की। उन्होंने एक प्रकरण का हवाला देते हुए कहा कि अभियुक्त को दो दिन की रिमांड अवधि बीतने के बाद वीसी न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित था। रिमांड पत्रावली के साथ उपलब्ध फर्द बरामदगी में अंकित किया गया कि बरामदगी की वीडियोग्राफी कराई गई है। जब विवेचक से वीडियोग्राफी मांगी गई तो उनके द्वारा उपलब्ध नहीं कराई गई। पता चला कि न तो वीडियोग्राफी कराई गई और न ही न्यायालय में प्रस्तुत की गई।


केस-2

उधमसिंहनगर के सिविल जज/न्यायिक मजिस्ट्रेट ने रिमांड देने के एक मामले में जिले के मजिस्ट्रेट-प्रथम को लिखकर कहा कि धारा 105 (बीएनएसएस) के प्राविधानों का अनुपालन नहीं किया गया है, जो कि अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में बिना साक्ष्यों के अवलोकन के न्यायिक अभिरक्षा रिमांड अस्वीकार किया जाता है। किच्छा के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यह पत्र मजिस्ट्रेट-प्रथम को 02 जुलाई को लिखा था।


केस-3

04 जुलाई को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोटपूतली जयपुर, ने पुलिस अधीक्षक कोटपूतली बहरोड, राजस्थान को जमानत से जुड़े एक मामले में पत्र लिखकर अवगत कराया कि प्रागपुरा थाना द्वारा धारा 105, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता- 2023 का पालन नहीं किया जा रहा है। विवेचक द्वारा साक्ष्य के तौर पर आडियो अथवा वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं पेश की गई है। जिससे अभियुक्त जमानत का लाभ प्राप्त करने का अधिकारी हुआ है। ऐसे में विवेचक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए न्यायालय को अवगत कराया जाए।

समाज में पुलिस की विश्वसनीयता धीरे-धीरे कम हो गई है। इसीलिए सरकार को यह व्यवस्था लानी पड़ी। माना कुछेक आकस्मिक मामलों में दिक्कत आ रही होगी, लेकिन सभी आकस्मिक मामलों पुलिस डिजिटल एविडेंस न तैयार कर सके, यह मेरी समझ से परे है। दूसरा, प्राविधान इतना जटिल भी नहीं है कि पुलिस की समस्या को न्यायालय न समझे। मेरा मानना है कि पुलिस को इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए।

– सुलखान सिंह, पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश

शुरू-शुरू में पुलिस को दिक्कतें आती हैं। बदलाव में समय लगेगा। अब कानून लागू होने के 24 घंटे के अंदर ही पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा देना मेरी नजर में गलत है। कुछ मामलों में तो न्यायालय को भी समझना होगा, कि इसका डिजिटल एवीडेंस तैयार कर पाना संभव नहीं है। न्यायालय घटना की देश-काल-परिस्थितियों को भी समझे। मैने महसूस किया है कि कई न्यायालयों में पुलिस के प्रति एंटी फीलिंग रहती है। कैसे भी हो पुलिस का विरोध करना है। यह नहीं होना चाहिए।

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