मुरादाबाद :-एंबुलेंस नहीं आई, ई-रिक्शा से अस्पताल गई गर्भवती…ये हाल है जननी सुरक्षा योजना का

By Sanvaad News

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मुरादाबाद , संवाद पत्र । प्रसव के लिए अस्पताल जाने को गर्भवती ने एंबुलेंस का घंटे भर इंतजार किया। नहीं आई तो दोबारा कॉल की जिस पर उसे बताया गया कि आप सेवा प्राप्त कर चुकी हैं। फिर मुगलपुरा से गर्भवती ई-रिक्शे से जिला महिला अस्पताल आई। उसे पहला बच्चा है। यही नहीं, गर्भवती के जेठ ने इस मामले में आईजीआरएस की तो जिम्मेदारों ने फर्जी रिपोर्ट लगाकर निस्तारण दिखा दिया। ये मामला राज्य स्तर से फीडबैक लेने में खुला। फीडबैक लेने वाले को शिकायकर्ता ने फोन पर बताया कि उसके पास न कोई अधिकारी आया न ही उसका फोन, शिकायत में क्या कार्रवाई हुई, ये तक उसे नहीं पता है। ये हाल है जननी सुरक्षा योजना का।

अली अख्तर ने बताया कि वह वार्ड-66 मुगलपुरा के रहने वाले हैं। उनके छोटे भाई सईद अख्तर की पत्नी अस्मत गर्भवती है। उसके पहला बच्चा है। पिछले दिनों प्रसव पीड़ा हुई थी तो उसे महिला अस्पताल लाने के लिए उन्होंने एंबुलेंस के संबंध में 102 नंबर पर कॉल की थी। एक घंटे तक इंतजार किया लेकिन, एंबुलेंस नहीं आई तो उन्होंने दोबारा कॉल की। जिस पर उन्हें बताया गया कि आपके मरीज को सेवा प्राप्त हो चुकी है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग की इस फर्जीवाड़े से उनके भाई की पत्नी को अस्पताल पहुंचाने में विलंब हुआ। ई-रिक्शा से उसे अस्पताल ले गए, गनीमत रही कि अस्मत को कोई अधिक दिक्कत नहीं आई। डॉक्टर ने प्रसव में अभी समय होने की बात कहकर कुछ दवाइयां देकर घर भेज दिया था। 

अली अख्तर ने बताया कि उन्होंने 7 सितंबर को आईजीआरएस पर शिकायत दर्ज कराई। 14 सितंबर को उनके पास फीडबैक के लिए कॉल आई। उनसे एंबुलेंस की सेवा और शिकायत पत्र के निस्तारण में संतुष्टता पूछी गई तो वह चौक गए। उन्होंने कॉल करने वाले को बताया कि उनकी शिकायत किसने और कब निस्तारित की, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में साफ हो गया कि शिकायत निस्तारण में भी फर्जीवाड़ा किया गया। अब इस मामले के निस्तारण की जिम्मेदारी जिला महिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को दी गई है।

सीएमओ के दावों पर करें गौर
जिले में 108 वाली 30 और 102 वाली 24 एंबुलेंस हैं। 102 वाली एंबुलेंस के लिए दावा है कि शहरी क्षेत्र में कॉल समाप्त होने के 20 मिनट में एंबुलेंस रोगी तक पहुंचती है। देरी होने पर जुर्माना लगता है। दावा ये भी है कि एंबुलेंस को रोगी तक पहुंचने में लगने वाला औसत समय केवल 6.34 मिनट है। एंबुलेंस को औसतन प्रतिदिन 8 ट्रिप्स किया जाना अनिवार्य है। आपको बता दें कि ये दावे सीएमओ हर जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक में प्रस्तुत करते हैं।

कॉलर का नंबर होता है, उसकी रिकॉर्डिंग होती है। ऐसे ही किसी शिकायत का निस्तारण नहीं हो जाता है। बाकी समस्या की हम अपने स्तर से जांच करा लेंगे।-नरेंद्र सिंह, प्रोग्राम मैनेजर, कार्यदायी संस्था-ईएमआरआई ग्रीन एनर्जी लिमिटेड हैदराबाद

यह मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। हां, इससे पहले 24 अगस्त को एक मामला सूर्यनगर सिविल लाइन की दिशा शर्मा का आया था। गर्भवती दिशा की डिलीवरी इमरजेंसी केस था। पारस ने एंबुलेंस के लिए कॉल की थी, जो नहीं पहुंची थी। कार्रवाई के लिए विवरण लखनऊ भेजा था तो वहां से लिखकर आया था जब कॉलर ने मांग की तो उस समय एंबुलेंस उपलब्ध नहीं थी।

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