मथुरा। कान्हा के ब्रज में सावन शुरू होते ही भक्ति रस की अनूठी गंगा का शुरू हुआ प्रवाह तेज होने लगा है तथा हरियाली तीज से तो इसमें तरह तरह के हिंडोले हिचकोले लेने लगते हैं। द्वारकाधीश मन्दिर में तो सावन की शुरूवात से ही तरह तरह के आयोजन किये जाते है।। ब्रज में कहावत है कि सावन के बिना ब्रज नहीं और ब्रज के बिना सावन नहीं। इसका सबसे पहले अनुभव सावन शुरू होते ही ब्रज के मशहूर द्वारकाधीश मन्दिर में देखने को मिलता है जब कि युगलस्वरूप को झूला झुलाने के लिए सोने चांदी के विशालकाय हिंडोले डाल दिए जाते हैं और श्यामाश्याम नित्य इस हिंडोले में झूलते हैं।
ये हिंडोले पहले केवल सावन मास में ही पड़ते थे किंतु अब ये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तक डाले जाते है। इस मन्दिर की दूसरी विशेषता इसमें सोने चांदी के हिंडोलो के साथ साथ वस्त्र, कांच, मोती , फल फूल , केला, काष्ठ आदि के हिंडोले अलग अलग तिथियों में डाले जाते है । सावन में द्वारकाधीश मन्दिर अलग अलग कलेवर में दिखाई पड़ता है। नाना प्रकार के हिंडोले बनाने के साथ सावन मांस का जीवन्त अनुभव कराने के लिए मन्दिर में घटा महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है।
मन्दिर के जन संपर्क एवं विधिक अधिकारी राकेश तिवारी ने बताया कि मन्दिर में श्रावण कृष्ण पक्ष की तेरस से घटाओं का बनना शुरू हो जाता है। जिस प्रकार से बादलों के रंग बदलते रहते हैं वैेसे ही मन्दिर में घंटाओं के रंग बदलते रहते हैं।कभी लाल घटा तो कभी हरी घटा, कभी पीली घटा तेा कभी लहरिया घटा या कभी काली घटा आदि घटाएं मन्दिर के जगमोहन में डाली जाती हैं। जिस रंग की घटा होती है उसी रंग के कपड़े मन्दिर की दीवारों, खंभो में लगाए जाते है तथा उसी प्रकार की रोशनी भी की जाती है।
इसी रंग की ठाकुर की साज सज्जा, आभूषण तथा श्रंगार होता है। केशरी घटा में मूंगा के, हरी घटा में पन्ना के, सोसनी और आसमानी घटा में नीलमणि के, लाल घटा में माणिक के, गुलाबी घटा में गुलाबी मीना के, काली घटा में हीरा के, लहरिया घटा में नवरत्न के तथा श्वेत घटा में पच्ची के जड़ाव के अभूषण ठाकुर को धारण कराए जाते हैं । घटा में जगमोहन में ही विभिन्न प्रकार के सरोवर भी बनाए जाते हैं। सरोवर में विभिन्न प्रकार के फुहारे चलते है जिनसे निकलनेवाला जल भी घटा के रंग का होता है।