बाराबंकी: महिला प्रधान यानी रबर स्टाम्प, पतियों का बोलबाला..हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद कटघरे में व्यवस्था

By Sanvaad News

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बाराबंकी, संवादपत्र । पंचायत वेब सीरीज में जब महिला ग्राम प्रघान मंजू देवी ने झंडा फहराने की बात कहकर अपना अधिकार जमाने की कोशिश की तब फुलेरा ग्राम पंचायत में प्रधानजी के नाम से मशहूर उनके पति के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। क्योंकि उन्हें मंजू देवी का आगे बढ़ना मंजूर न था। लेकिन बात चाहे रील लाइफ की हो या फिर रियल लाइफ की, स्थिति लगभग एक ही है। फुलेरा की तरह जिले में भी जिन ग्राम पंचायतों की जनता ने वोट देकर एक महिला को अपना प्रधान चुना, उनमें से अधिकांश की जगह उनके पति या अन्य परिजनों का ही बोलबाला है। 

महिला प्रधान तो पर्दे से बाहर ही नहीं निकल सकीं। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की बीते शनिवार को प्रधानपतियों पर सख्त टिप्पणी ने कहीं न कहीं इस व्यवस्था को एकबार फिर कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि पति अपनी प्रधान पत्नियों का इस्तेमाल रबर स्टॉम्प की तरह कर रहे हैं। जबकि उन्हें प्रधान के कार्यों में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने तो इसपर लगाम लगाने के लिए चुनाव आयोग से भविष्य में सभी प्रत्याशियों से अपने कर्तव्यों का निर्वहन खुद करने का हलफनामा लेने का भी निर्देश दे दिया।

जिले की अगर बात करें तो यहां कुल 1155 ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें से 390 ग्राम पंचायतों में महिला प्रधान हैं। लेकिन कुछ को अगर छोड़ दें तो जिले की अधिकांश पंचायतों की बैठक से लेकर जो प्रमुख काम महिला प्रधानों को करने चाहिये, वह उनके पति कर रहे हैं। यहां तक कि गांव के विकास कार्यों के लिये भी महिला प्रधानों के पति ही अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से मुलाकात करते हैं। अधिकारियों का भी यही मानना है कि महिला प्रधानों की जगह उनके पतियों का प्रभाव ही रहता है। जिसके चलते अक्सर गांव के विकासकार्यों में बाधा उत्पन्न होने की शिकायतें भी मिलती हैं। अधिकारियों की मानें तो महिला प्रधान घर व खेतों का काम तो संभाल लेती हैं। पर उन्हें अपनी पंचायत की उस जनता से मिलना गवारा नहीं, जिसने उन्हें वोट देकर कुर्सी का हकदार बनाया।

केस एक
बंकी ब्लाक की ग्राम पंचायत मंजीठा की ग्राम प्रधान शबाना हैं। लेकिन उनके पति मो. वज्जू ही प्रधानी का सारा कामकाज देखते हैं। क्षेत्र में इनके पति मो. वज्जू ही प्रधान के रूप में जाने जाते हैं। शबामा रबर स्टांप वाली भूमिका अदा करने तक ही सीमित हैं।

केस दो
हरख ब्लॉक की बोजा ग्राम पंचायत में सीमा बानो प्रधान हैं। उनके पति शकील अहमद बीएसएनएल में कार्यरत हैं। सीमा बानो ने भले ही चुनाव जीता हो। पर क्षेत्र में इनके पति ही प्रधान के रूप में जाने जाते हैं। क्षेत्र में वही सक्रिय रहते हैं।

केस तीन
बनीकोडर ब्लॉक की ग्राम पंचायत जयचंदपुर की प्रधान तो पूनम तिवारी है। लेकिन यहां के लोग भी बड़ी साफगोई से कहते हैं कि महिला सीट थी, इसलिए उनके नाम से चुनाव लड़ा। पर, चुनाव लड़ने से लेकर गांव की समस्याएं और विकास कार्य के सभी काम उनके पति उमेश तिवारी ही देखते हैं। बाजपुर ग्राम पंचायत की महिला प्रधान राजरानी और ग्राम पंचायत बबुरी की ग्राम प्रधान आशा मिश्रा है। लेकिन प्रधानी इनके पति ही चलाते हैं।

केस चार
ब्लॉक रामनगर की ग्राम पंचायत सिलौटा की प्रधान विमला देवी के पति विनोद कुमार ग्राम पंचायत का पूरा कार्य करवाते हैं। कुछ माह पहले गांव के ही आवास लाभार्थी ने उनपर पैसे लेने का आरोप लगाया था। जिसमें उच्च अधिकारियों के द्वारा जांच भी की गई थी। जबकि ग्राम पंचायत चांदपुर उटखरा की ग्राम प्रधान संगीता देवी का कामकाज भी उनके प्रतिनिधि सरोज कुमार ही देखते हैं। यह भी आए दिन विवादो के चलते चर्चा में रहते हैं।

इन्होंने पेश की मिसाल
जहां अधिकतर महिला ग्राम प्रधान रबर स्टांप साबित हो रही हैं, तो दूसरी तरफ जिले की ही दो पूर्व महिला ग्राम प्रधानों ने अपने कार्यकाल में मिशाल पेश की थी। मसौली ब्लॉक की चंदवारा ग्राम पंचायत की प्रधान प्रकाशिनी जायसवाल के द्वारा कराए गये कामों की चर्चा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक थी और उन्होंने प्रकाशिनी जयसवाल को सम्मानित भी किया था। वहीं कोठी ग्राम पंचायत की प्रधान रह चुकी माहेजबी ने भी अपने कार्यकाल में दो राष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ अलग-अलग समय में 11 पुरस्कार प्राप्त किये थे।

प्रधान के कार्य व दायित्व तय हैं। ग्राम प्रधान के स्थान पर अन्य कोई कार्य नहीं कर सकता। प्रधान के कार्य में हस्तक्षेप की शिकायत पर कार्रवाई भी की जाती है। महिला प्रधान अथवा पुरुष के स्थान पर कोई दूसरा प्रधान पद के कार्य का अधिकार नहीं रखता

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