प्रयागराज, संवादपत्र । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के विवादित बयान को लेकर दाखिल याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिका में कोई ऐसा तत्व नहीं है, जिसके आधार पर उपमुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा किया जाए। यह बयान पार्टी मंच पर दिया गया है। संवैधानिक पद पर रहते हुए सरकारी मंच पर नहीं। पार्टी मंच में व्यक्तिगत स्तर पर दिए गए बयानों का कोई मायने नहीं होता है, इसलिए मौजूदा जनहित याचिका खारिज होने योग्य है।
हालांकि याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि यह बयान उपमुख्यमंत्री द्वारा दिया गया है, इसलिए जब तक मंत्रिपरिषद इसे अस्वीकृत नहीं कर देती, तब तक अच्छे और संवैधानिक शासन के बारे में उचित संदेह बना रहेगा और इसलिए विपक्षियों को याचिका में की गई प्रार्थना के अनुसार निर्देशित किया जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि केवल इस तथ्य के आधार पर कि वह उपमुख्यमंत्री है, पार्टी के सदस्य और उसके पदाधिकारी के रूप में उसकी स्थिति समाप्त नहीं हो जाती है और केवल इसलिए कि पार्टी के किसी मंच पर कोई कथित बयान दिया गया है, वह अपने आप में सुशासन की कमी और उसके अभाव से संबंधित आशंका की अभिव्यक्ति के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचने का आधार नहीं बन सकता है।
मालूम हो कि याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने राज्य सरकार का पक्ष सुनने की आवश्यकता को नकारते हुए फैसला सुरक्षित कर लिया था। दरअसल उपमुख्यमंत्री द्वारा गत 14 जुलाई को दिए गए एक बयान कि ‘सरकार से बड़ा संगठन होता है’ के खिलाफ 31 जुलाई को अधिवक्ता मंजेश कुमार यादव ने याचिका दाखिल की थी। याचिका में केशव प्रसाद मौर्य के आपराधिक इतिहास का भी जिक्र किया गया था।