गौरव जोशी, नैनीताल, संवादपत्र । एक बाजू उखड़ गया जबसे और ज्यादा वजन उठाता हूं…प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां नैनीताल के सचिंद्र बिष्ट पर सटीक बैठती हैं। सचिंद्र ने दोनों हाथ कट जाने के बाद भी हार नहीं मानी और जिंदगी के इस दुखद मोड़ के बाद भी जीवन को एक नई दिशा दी। सचिंद्र की कहानी जितनी दर्दनाक है उतनी ही प्रेरक भी है। उनके हौंसले और जज्बे के आगे नतमस्तक हुए बगैर नहीं रहा जा सकता।
पेशे से फिल्म मेकर, ग्राफिक डिजाइनर, वीडियो एडिटर और पर्वतारोही रहे सचिंद्र ने अपनी जिंदगी का लंबा समय मुंबई समेत देश के बड़े महानगरों में बिताया। लेकिन कुछ वर्ष पूर्व सब कुछ छोड़कर नैनीताल आ गए और यहां शीतला गांव में लोगों को पर्वतारोहण के गुर सिखाने लगे। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक दिन अचानक आए बुखार ने उनकी दुनिया बदल डाली।
बातचीत के दौरान सचिंद्र ने बताया कि मार्च 2023 में वह शीतला में अपने रॉक क्लाइंबिंग स्कूल में पर्वतारोहण सीखा रहे थे, तभी अचानक उन्हें तेज बुखार आ गया। उन्हें तत्काल हल्द्वानी ले जाया गया, जिसके बाद वह सेप्टिक शॉक में चले गए। उसके बाद उन्हें दिल्ली मैक्स हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने बताया कि उनके शरीर में बैक्टिरियल इन्फेक्शन हो गया है। जिस वजह से गैंग्रीन उनके शरीर में फैल चुका है।
उनका जीवन बचाने के लिए उनके दोनों हाथ और पैरों की उंगलियों को काटना होगा। इसके बाद उनके दोनों हाथों और पैर की उंगलियों को काटना पड़ा। उपचार के बाद सचिंद्र हल्द्वानी आ गए और दो माह तक उपचार करवाया। बताया कि उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई इलाज में लगा दी। रिश्तेदारों और दोस्तों ने उनकी काफी मदद की।
पेंटिंग को बनाया आजीविका का जरिया
सचिंद्र बताते हैं कि उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए कटे हाथों की कोहनी में ब्रश लगाकर पेंटिंग्स करना शुरू किया। अब तक वह दर्जनों पेंटिंग बना चुके हैं। जिन्हें लोग बेहद पसंद कर रहे हैं। उनकी बनाई पेंटिंग की डिमांड विदेशों तक है। उन्होंने अपने घर की दीवारों में भी बेहद सुंदर पेंटिंग बनाई है।