काबुल। तालिबान ने गुरुवार को कहा कि उस पर लगाए जा रहे लैंगिक भेदभाव एवं अन्य मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप पूरी तरह गलत हैं। चार देशों ने अफगानिस्तान के शासकों को महिलाओं एवं लड़कियों के साथ उनके व्यवहार को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत जवाबदेह ठहराने का निश्चय किया है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी और नीदरलैंड ने संयुक्त राष्ट्र महिला संधि का उल्लंघन करने को लेकर तालिबान के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू करने की तैयारी कर ली है। अफगानिस्तान इस संधि का हिस्सा है। इन देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर बुधवार को यह पहल शुरू की। महासभा का यह सत्र न्यूयॉर्क में सोमवार तक चलेगा।
वर्ष 2021 में सत्ता पर काबिज होने के बाद और उदार शासन प्रदान करने का वादा करने के बाद बावजूद तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों को छठी कक्षा से आगे पढ़ाई से वंचित कर दिया, उन्हें सार्वजिनक स्थानों एवं अधिकतर नौकरियों से दूर कर दिया। अगस्त में ‘वाइस एंड वर्च्यू’ (नैतिकता क्रियान्वयन से संबंधित) मंत्रालय ने महिलाओं के चेहरे को ढकने तथा सार्वजनिक स्थानों पर उनके आवाज उठाने पर रोक लगाने वाले कानून जारी किए। बीस से अधिक देशों ने तालिबान के खिलाफ प्रस्तावित कानूनी कार्रवाई के प्रति बृहस्पतिवार को अपना समर्थन व्यक्त किया।
इन देशों ने कहा, हम अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर व्यवस्थित तरीके से मानवाधिकार उल्लंघन खासकर महिलाओं एवं लड़कियों के साथ भेदभाव की निंदा करते हैं। उन्होंने कहा, अफगानिस्तान महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन संबंधी संधि के तहत कई दायित्वों के निरंतर घोर और व्यवस्थित उल्लंघन को लेकर इस अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत जिम्मेदार है। तालिबान के उप-प्रवक्ता हमदुल्ला फितरात ने कहा कि अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की रक्षा की जाती है और किसी को भेदभाव नहीं सहना पड़ता है।
उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, दुर्भाग्य से, देश से चली गईं (अफगान) महिलाओं के मुंह से अफगानिस्तान के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने और स्थिति को गलत तरीके से पेश करने का प्रयास किया जा रहा है। फितरात ने कहा कि अफगानिस्तान पर मानवाधिकारों के उल्लंघन और लैंगिक भेदभाव का आरोप पूरी तरह गलत है।