जम्मू-कश्मीर में सपा की साइकिल लैपटॉप, बदले चुनाव चिन्ह, ब से समाजवादी पार्टी के नतीजे?

By Sanvaad News

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जम्मू-कश्मीर, संवाद पत्र । विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग बुधवार को हो गई है लेकिन अभी दूसरे और तीसरे चरण के मतदान बाकी है। इस बार मैदान में अखिलेश यादव भी उतरे हैं। हालांकि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा न होने की वजह सपा को कश्मीर में साइकिल की जगह लैपटॉप चुनाव चिन्ह मिला है। ऐसे में देखना होगा कि क्या बदले हुए चुनाव चिन्ह के साथ अखिलेश यादव की पार्टी इस बार जम्मू-कश्मीर में कुछ कमाल कर पाएगी।

लोकसभा चुनाव के बाद सपा को उत्तर प्रदेश के दायरे तक सीमित नहीं रखने के बजाय राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने के लिए अखिलेश यादव लगातार कोशिश कर रहे हैं। इस प्लान के तहत अखिलेश ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन यूपी में सपा का परंपरागत चुनाव निशान साइकिल जम्मू-कश्मीर में लैपटॉप बन गया। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा न होने के चलते सपा को कश्मीर में लैपटॉप चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। ऐसे में देखना है कि बदले हुए चुनाव निशान से अखिलेश यादव कितना सपा का भाग्य कश्मीर में बदल पाते हैं?

जम्मू-कश्मीर के पहले चरण की 24 सीटों पर भले ही चुनाव हो गए हैं, लेकिन सपा का असल इम्तिहान दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव में है। सपा दूसरे और तीसरे चरण की 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दूसरे चरण में सपा कश्मीर रीजन की 10 और जम्मू क्षेत्र की पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसके अलावा तीसरे चरण में पांच सीटों पर किस्मत आजमा रही है। दूसरे चरण के लिए 25 सितंबर और तीसरे चरण के लिए एक अक्टूबर को मतदान है, जहां पर सपा की अग्नि परीक्षा होनी है।

लैपटॉप बना चुनाव चिन्ह

राष्ट्रीय पार्टी न होने के चलते समाजवादी पार्टी को उसका परंपरागत चुनाव निशान साइकिल नहीं मिल सकी। इसके चलते सपा के ज्यादातर उम्मीदवारों ने लैपटॉप को चुनाव-चिन्ह के तौर पर चुना है। अखिलेश यादव ने 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में लैपटॉप देने का वादा किया था। सत्ता पर काबिज होने के बाद अखिलेश यादव ने मुफ्त में लैपटॉप बांटने का काम 12वीं में पास छात्रों को किया था। दो साल में 27 लाख से अधिक लैपटॉप वितरित किए गए थे। इस तरह अखिलेश यादव के लैपटॉप यूपी के घर-घर तक पहुंच गए थे लेकिन क्या कश्मीर की सियासत में लैपटॉप के चुनाव निशान के सहारे करिश्मा दिखा पाएंगे?

जम्मू-कश्मीर में सियासी आधार

जम्मू-कश्मीर में सपा का कोई खास सियासी आधार नहीं रहा। सपा 2008 और 2014 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में लड़ चुकी है, लेकिन अपना खाता तक नहीं खोल सकी। सपा ने 2008 में कश्मीर की 36 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से एक भी उम्मीदवार नहीं जीत सका। सपा को 24194 वोटों के साथ 0.61 फीसदी वोट मिले थे। सपा का एक भी उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सका था। सपा ने 2014 में कश्मीर की सात विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उसे 4985 वोटों के साथ 0.10 फीसदी वोट शेयर हासिल किए थे। इस तरह सपा ने अभी तक जम्मू-कश्मीर में कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी है।

तीसरी सबसे बड़ी पार्टी

2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 37 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सपा उभरी है। इसके चलते अखिलेश यादव सपा को राष्ट्रीय पार्टी बनने की कवायद में है। इसी कड़ी में सपा जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बहुल सीटों पर किस्मत आजमा रही है। जम्मू-कश्मीर में साइकिल निशान की जगह सपा को लैपटॉप आवंटित किया है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर में पार्टी के अधिकांश उम्मीदवार सपा प्रमुख अखिलेश यादव और सपा संरक्षक दिवंगत मुलायम सिंह यादव के नाम और फोटो का इस्तेमाल कर वोट मांग रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर चुनाव में सपा

सपा उम्मीदवार घर-घर जाकर लोगों को समझा रहे हैं कि वह सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर चुनाव में पार्टी का चुनाव चिन्ह अलग है। जनता को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि सपा का चुनाव निशान कश्मीर में लैपटॉप है। इतना ही नहीं अखिलेश यादव की कश्मीर में रैली कराने की भी योजना पार्टी ने बनाई है। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव तीसरे चरण के चुनाव में जम्मू-कश्मीर आ सकते हैं।

इस बार खुल पाएगा खाता?

सपा के लिए जम्मू-कश्मीर का विधानसभा चुनाव काफी चुनौती पूर्ण दिख रहा है। एक तरफ सपा को अपना परंपरागत चुनाव निशान न मिलने से पहचान की दिक्कत हो रही है तो दूसरी तरफ बीजेपी और कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच सीधे मुकाबले से भी टेंशन बढ़ गई है। मतदाता बीजेपी को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे हैं या फिर हराने की कोशिश में हैं। लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही पैटर्न दिखा था। ऐसे में अखिलेश यादव के लिए जम्मू-कश्मीर के चुनाव में अपनी पार्टी का खाता खोलने की चुनौती खड़ी हो गई है?


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