लखनऊ, संवादपत्र : बेसिक शिक्षा परिषद के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अनुदेशकों ने मंगलवार को बेसिक शिक्षा निदेशालय का घेराव किया। अनुदेशकों का कहना है कि उन्हें अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए मुलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। सरकार ने सत्ता में आने से पहले अनुदेशकों से कई बड़े-बड़े वादे तो किए थे, लेकिन सत्ता में आने के बाद से सब गायब हो गया। मुख्यंत्री ने 2017 में एक ट्विट किया था, जिसमें लिखा था कि सरकार अनुदेशक शिक्षकों की सैलरी बढ़ाकर 17 हजार कर देगी, लेकिन शिक्षकों का कहना है सैलरी बढ़ाने की जगह उनकी सैलरी से 1470 रुपए काट लिए गए। उन्हें हर चीजों के लिए सैक्रीफाइज करना पड़ता है। उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत 27,555 अनुदेशकों की मौलिक समस्याओं एवं महिला अनुदेशकों की मानवीय एवं मूलभूत समस्याओं की लगातार उपेक्षा की जा रही है।
समान कार्य तो समान वेतन
शिक्षकों का कहना है कि वे सरकार द्वारा आयोजित हर काम में पूर्ण सहयोग करते हैं। फिर चाहे वो जनगणना हो, चुनाव हो या फिर घर-घर जाकर छात्रों को लेकर आना। पर्मानेंट शिक्षकों की तरह काम रह रहे हैं। जितना भार वो संभाल रहे हैं उतना ही वे भी झेल रहे हैं, लेकिन उनकी सैलरी 70 हजार और अनुदेशकों की सैलरी 9 हजार यह किस तरह का न्याय है। अगर दोनो बराबर काम कर रहे हैं तो उन्हें सैलरी भी समान मिलनी चाहिए। शिक्षकों का कहना है कि न ही उन्हें कोई मेटरनिटी लीव, मेडिकल फैसिलिटी और न ही सही से सीएल साल भर में उन्हें सिर्फ 10 सीएल मिलती हैं। कुछ भी अवश्यक काम हो तो उन्हें अपनी सैलरी कटवाकर जाना पड़ता है।
भावुक हुए शिक्षक
शिक्षकों का कहना है कि उन्हें अपना घर चलाने के लिए भी सोचना पड़ता है। महंगाई इतनी है ऐसे में 9 हजार में क्या होता है। शिक्षकों से बात करते समय कई शिक्षक भावुक हो गए। उनकी आंखों में आशु आ गए। महिला शिक्षकों ने कहा कि कई बार उन्हें बीमारी में स्कूल आना पड़ता है क्योंकि उनके पास छुट्टी नहीं होती हैं और अगर कोई प्रेग्नेंट है तो उसे मेटर्निटी लीव नहीं मिलती क्यों कि वे अनुदेशक शिक्षक हैं।
आई पुलिस, आक्रोशित शिक्षक
भारी संख्या में शिक्षकों की मौजूदगी की वजह से प्रशासन को आगे आना पड़ा। मौजूदा अफसर शिक्षकों को समझाने में लगे हुए थे। किसी न किसी तरह से वे घर चले जाए। शिक्षकों का कहना है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं हो जाती हैं तब तक वे पीछे नहीं हटेंगे।
क्या है मांग
1. यह कि शिक्षा अधिकार अधिनियम से नियुक्त अनुदेशक जुलाई 2013 से पुर्ण कालिक कार्य करते हुए नौनिहालों का भविष्य संवार रहे हैं। अधिसंख्य अनुदेशकों की उम्र सीमा 40 वर्ष पार कर चुकी है। रोजीरोटी का अब कोई विकल्प नहीं है। अतः नवीन शिक्षा नीति के अनुसार हम अनुदेशकों को नियमित किया जाए।
2. यह कि नियमितीकरण होने तक तत्काल प्रभाव से 12 माह के लिए समान कार्य, समान वेतन की व्यवस्था लागू की जाए।
3. यह कि नवीनीकरण के नाम पर हम अनुदेशकों का अमानवीय शोषण किया जाता है। शोषण के कुकृत्य ऐसे हैं जिसे सिर्फ संवेदनशील सरकार ही समझ सकती है। अतः स्वतः नवीनीकरण व्यवस्था लागू हो।
4. यह कि सरकार द्वारा हम अनुदेशकों के विरुद्ध अदालतों में चलाई जा रही समस्त कार्यवाही अविलंब वापस लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय व माननीय उच्च न्यायालय डबल बेंच में पारित निर्णय एवं दिशानिर्देर्शों को तत्काल प्रभाव से निष्पादिल किया जाए।
5. महिला अनुदेशकों का अन्तर्जनपदीय स्थानांतरण (जिस जनपद में शादी हुई हो) प्राथमिकता के आधार पर किया जाए।
6. यह कि अत्यंत अल्प मानदेय से रुग्ण हो चुके हम अनुदेशकों को आयुष्मान योजना का लाभ दिया जाए। यह कि हम अनुदेशकों के भविष्य एवं आकस्मिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा (EPF) की गारंटी दिया जाए।
8. यह कि 100 छात्र संख्या की तलवार का प्रयोग शिक्षकों द्वारा अनुदेशकों के सम्बन्ध में जानबूझकर किया जा रहाऐसे में शोषण से बचाव के राहत कारी उपाय किये जाएं। मात्र अनुदेशकों विद्यालयों को शामिल कियतरफा कार्यवाही नेहामक कयाय के विरुद्ध है। स्थानांतरण में उन समस्त विद्यालयों को शामिल किया जाए जहाँ संख्या 100 से ज्यादा हो।
9. यह कि हम अनुदेशकों को 10 संयोगी अवकाश (CL) के अलावा कोई छुट्टी नहीं है। जो कि मानवाधिकारों के विरुद्ध है अतः अनुदेशका अजा भी शिक्षकों की तरह ही आकस्मिक अवकाश, अवकाश (CCL) एवं चिकित्सकीय अवकाश बाल्य देखभाल मातृत्व अवकाश का उपबंध किया जाए। 10. यह कि अत्यंत अल्प मानदेय को लगातार कोर्ट में उलझाए, लटकाने के परिणामस्वरूप स्वयं के व्यवस्था से आनलाइन गतिविधियों का संचालन तकनीकी रूप से असम्भवा हो चला है। हम अनुदेशक कर्मठता और इमानदारी से समस्त गतिविधियां आफलाइन मोड में ही निष्पादित करेंगे।
11. यह कि अत्यंत अल्प मानदेय एवं संकीर्ण सामाजिक स्थिति के कारण हम अनुदेशक मानवीय गरिमा के अनुकूल सामान्य जीवनचर्या से तालमेल नहीं बना पा रहे। परिणामस्वरूप कार्यस्थलों पर शोषण एवं असहजता से अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। अतः अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के आलोक में बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकारों के प्रवर्तन के लिए हम अनुदेशकों की उपरोक्त समस्याओं का त्वरित निस्तारण हो।