अनदेखे बेजोड़ अवतार में करीना कपूर, सिर्फ मर्डर मिस्ट्री नहीं समाजिक मुद्दों को भी उठाती है हंसल मेहता की ‘द बकिंघम मर्डर्स’

By Sanvaad News

Published on:

Follow Us

मुम्बई : पिछले कुछ सालों में करीना कपूर खान की फिल्मोग्राफी में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। पहले की तुलना में एक्ट्रेस का फिल्में चुनने का नजरिया अब काफी बदल गया है। अभिनेत्री अब ऐसे किरदार चुन रही हैं जो उनको पर्दे पर निखारे। ‘गुड न्यूज़’, ‘जाने जान’ के बाद अब ‘द बकिंघम मर्डर्स’ ऐसे ही चुनाव में से एक है। करीना न सिर्फ फिल्म की अभिनेत्री हैं, बल्कि वो पहली बार एक प्रोड्यूसर के तौर पर भी नजर आई हैं। हंसल मेहता के निर्देशन में बनी ‘द बकिंघम मर्डर्स’ 13 सितंबर यानी आज सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। फिल्म कैसी है, कलाकारों ने कैसा अभिनय किया, फिल्म का निर्देशन कैसा है, क्या फिल्म की कहानी आपको कुर्सी से बांधे रखेगी, फिल्म में क्या नया है, इन तमाम सवालों के सटीक जवाब के लिए पढ़ें पूरा रिव्यू।

फिल्म की कहानी

‘द बकिंघम मर्डर्स’ की कहानी पूरी तरह से जसमीत बामरा (जस) के इर्द गिर्द घूमती है। जसमीत बामरा एक जासूस है। इस किरदार को करीना कपूर खान ने निभाया है। जसमीत एक मुश्किल दौर से गुजर रही है, वो अपने बेटे को खो चुकी है। दरअसल एक पागल बेटे की गोली मार कर हत्या कर देता है, जिसके बाद जसमीत ब्रिटेन के बकिंघमशायर के वायकोम्ब नामक कस्बे में ट्रांसफर लेती है। वो सोचती है कि जगह बदलने से उसका दुख थोड़ा कम हो जाएगा। अपने जीवन को सुलझाने के लिए वो अपना घर बार छोड़कर नए सिरे से नई जगह बस जाती है। नए शहर में नई शुरुआत एक नए केस से होती है। वायकोम्बे में उसका पहला मामला एक लापता सिख बच्चे का है, जो एक पार्क में एक लावारिस कार में मृत पाया गया। जांच शुरू होती है, जिसमें पता चलता है कि मुख्य संदिग्ध साकिब नाम का लड़का है जो वास्तव में मृत लड़के के पिता के पूर्व-बिजनेस पार्टनर का बेटा है। एक ऐसे गवाही तैयार कि जाती है कि जिससे साबित हो सके कि साकिब ही असली हत्यारा है। हालांकि जसमीत झूठ को पकड़ लेती है और फिर वास्तविकता  पता लगाने के लिए जुट जाती है। वो गहराई से जांच करती है। पूरे मामले के बीच, बदले की भावना, सांप्रदायिक तनाव, एलजीबीटीक्यू मुद्दे के साथ और भी बहुत कुछ कहानी में देखने को मिलने वाला है।

अभिनय

जसमीत के रोल में करीना कपूर खान ब्रिटिश और भारतीय एक्टर्स के साथ काफी सहज लगी हैं। करीना बड़े पर्दे पर एफर्टलेस नजर आ रही हैं और उन्हें इतने प्रभावी अंदाज में देखना दिलचस्प होने के साथ ही किसी ट्रीट से कम नहीं है। करीना का मनमोहक प्रदर्शन है। कहानी का केंद्र होते हुए भी वो बाकी कलाकारों को स्पेस दे रही हैं। इस बार करीना की परफॉर्मेस की जड़ें बहुत मजबूत हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे अवतार ने करीना को पहली बार पर्दे पर लाने में निर्देशक हंसल मेहता पूरी तरह सफल साबित हुए हैं।

मृतक बच्चे के पिता दलजीत कोहली के किरदार में शेफ रणवीर बरार नैचुरल हैं। रणवीर की ये डेब्यू फिल्म है, लेकिन उनका अंदाज एक मंझे हुए एक्टर कि तरह है। स्त्री द्वेषी पति, बेटे से अटूट प्यार और उसे खोने की त्रासदी दिखाते हुए वो अपनी एक्टिंग से दर्शकों को आश्वस्त करने में कामयाब हैं। ऐश टंडन का भी उल्लेख किया जाना चाहिए, जो एक दुखी पुलिस अधिकारी की भूमिका में पूरी तरह से ढल गई हैं। प्रीति कोहली के रोल में प्रभलीन संधू का भी काम सरहनीय है। ब्रिटिश लेखक, संगीतकार और अभिनेता कीथ एलन भी प्रभावशाली हैं। सारा जेन डायस भी एक छोटी भूमिका में नजर आ रही हैं, जो देखने लायक है। साकिब के किरदार में कपिल रेडकर हैं और उनकी तारीफ भी बनती है। कपिल का काम सराहनी है।

निर्देशन

हंसल मेहता एक मशहूर कहानीकार हैं और एक बार फिर उन्होंने एक मनोरंजक फिल्म बनाई है, जिसमें दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए कई परतें हैं। यह एक क्रिकेट मैच और फिर एक हत्या को लेकर समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव को दिखाती है। यह एलजीबीटीक्यू समुदाय के सामने आने वाले मुद्दों और किशोरों के बीच नशीली दवाओं के दुरुपयोग की कहानी भी कहती है। इसमें एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की झलक भी है।

रहस्यमई हत्या की कहानियां हमेशा ध्यान खींचती हैं, खासकर जब उनको वास्तविक तरीके से उकेरा गया हो। इस फिल्म की कहानी को कहने में निर्देशक हंसल मेहता जरा भी नहीं चुके हैं। यह फिल्म एक सोच-समझकर तैयार की गई कहानी है, इसलिए इसमें भरपूर सस्पेंस, थ्रिल और ड्रामा है। कहानी उन सभी साज़िशों और मोड़ों को सामने लाती है, जिनकी आप उम्मीद करते हैं। हंसल मेहता ने इस कहानी को बिल्कुल ब्रिटिश निर्देशकों के अंदाज में कहने की कोशिश की है। उन्होंने बड़ी चतुराई से ब्रिटिश अभिनेताओं को प्रमुख भूमिकाओं में लिया है और फिल्म में पंजाबी, हिंदी और अंग्रेजी का मिश्रण देखने को मिल रहा है। सिनेमैटोग्राफी, प्रोडक्शन डिजाइन और साउंड डिजाइन कहानी को और अधिक बल दे रहे हैं। फिल्म में एक ह्यूमन एंगल भी है, जो कहानी को इमोशनल टच देता है। ऐसे में ये फिल्म हंसल मेहता की सफल फिल्मों की लिस्ट में एक और कड़ी के तौर पर जुड़ने वाली है।

आखिर कैसे है फिल्म

ये फिल्म आपको अंत तक बांधे रखेगी। कहानी परत दर परत खुलती है। कलाकारों का अभिनय भी कमल है। निर्देशन सधा हुआ है, ऐसे में ये फिल्म थिएटर में देखने लायक है। अगर कमी की बात करें तो क्लाइमैक्स थोड़ा कमजोर पड़ता है जिसे और दमदार बनाया जा सकता था। वहीं एक दो जगह ऐसी भी हैं जहां सस्पेंस हल्का ढीला पड़ता है, अगर ये कमी पूरी हो जाती तो इस फिल्म को आधे से एक अंक और अधिक दिए जा सकते थे। लेखन की इस कमी को वैसे नजरंदाज किया जा सकता है, क्योंकि जयदातर हिस्से प्रभावी हैं और इसे जरूर देखने लायक फिल्म बनाते हैं।

Sanvaad News

आपका स्वागत है संवाद पत्र में, जहाँ हम आपको ताज़ा खबरों और घटनाओं से अवगत कराते हैं। हमारी टीम हर समय तत्पर है ताकि आपको सबसे सटीक और नवीनतम समाचार मिल सकें। राजनीति, खेल, मनोरंजन, व्यवसाय, और तकनीक से संबंधित खबरें पढ़ने के लिए हमारे साथ बने रहें। संवाद न्यूज़ - आपकी आवाज़, आपकी खबर।

Leave a Comment